Saturday 10 October 2015

journey to bangalore

सफर

दूर खड़े थे, अंजान बड़े थे
नयी नयी थी अभी पढ़ाई
टेंशन में सब पड़े थे
चढ़नी है 4 साल की चढ़ाई

घर से आये कर तैयारी
नयी नयी थी सबकी यारी
बड़े थे सपने, नयी थी सोच
ऊपर से रैगिंग का खौफ

रूड़की में रहके समझ थी आरी
इंजीनियरिंग है बहुत ही भारी
अंजान सा पेपर करे बुरे हाल
निकल गया था पहला साल

आ गए थे दूसरे साल में
फिर भी थे उसी हाल में
पेपर ना सिलेबस से आये
अटेंडेंस से सब घबराये

तीसरा साल था फुटबॉल में
काउंटर स्ट्राइक के जंजाल में
कोई पढ़ाई, कोई करे चिल
फायर इन the होल, एंड किल

सता रहा था जॉब का डर
छोड़ तैयारी ,GATE का पढ़
पहुँच गए थे राजधानी
अंकुश सर की थी याद कहानी

हॉस्टल गिरनार , और जिआ सराय
लॉजिक प्रोग्रामिंग समझ ना आये
थी सिखलाई, मेहनत कराई
कुछ मिले दोस्त, और कुछ भाई

अभी भी लाइफ उसी जोर में
पहुँच गए बैंगलोर में
9-5 का अब है काम
और 2 दिन पूरा आराम

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